Thursday 14 July 2011

जब बम के गोले बजते है...

जब बम के गोले बजते है
तब हम नींदों से जगते है

दो चार गालियां देते है
दो चार सिसकियाँ लेते हैं

दो चार फाइलें इधर ऊधर
दो चार अफसरान इधर उधर

कुछ दिन को आफत आती है
आपा - धापी दे जाती है

कुछ दिन में सब पहले जैसा
फिर वही माजरा होता है

सोने वाले सो जाते हैं
सब अपने कामों में लगते है

धर्मेन्द्र मन्नू

दिल जो तुमने पहलू में छुपा के रखा है....

दिल जो तुमने पहलू में छुपा के रखा है
उसने ही तो दीवाना मुझे बना के रखा है

हमसे नज़र चुराने की कोई तो हो वज़ह
बोलो कहां पे हमसे नज़र बचा के रखा है

जाओ कहां हमसे नज़र बचा के जाओगे
हर राह पे हमने नज़र बिछा के रखा है

कह दो सनम आओ कभी अपना हालेदिल
अपने लबों पे ताला क्यों लगा के रखा है

अपने हर एक ख्वाब की तबीर तुमसे है
तुम्हारे लिये ख्वाब हर सजा के रखा है

धर्मेन्द्र मन्नू