Thursday 8 December 2011

वो कहते हैं कि कहीं कोई शोषण नही है....

वो कहते हैं कि कहीं कोई शोषण नही है
हड्डियों का ढांचा डाइटिंग है कुपोषण नही है

फ़टे कपड़ों के अंदर झांकती बेशर्म नज़रें
कैसे कोई समझाये इन्हे कि ये फ़ैशन नही है

मिटती ही नही भूख उसकी वो क्या करे
नही तो यहां कोई किसी का दुश्मन नही है

आटा चावल दाल ये रोज़ के तमाशे हैं
इन सब पर विचारना कोई चिन्तन नही है

कौड़ियों में मिलते हैं मजबूरी के मारे यहां
जिसकी मर्जी छोडे जाये कोई बंधन नही है

धर्मेन्द्र मन्नु