Friday 26 August 2011

उनके होंठो पे रुसवाई का बहाना होगा....

दर्द को कही गहरे में छुपाना होगा
सबके सामने हंसना मुस्कुराना होगा

पल पल टूटते हैं विश्वास के किले
ताश के पत्तों को फ़िर से सजाना होगा

भरम रखना है मोहब्बत का दिल में
उस गली में अब रोज़ आना जाना होगा

चुभते हैं कांटे ये उनकी फ़ितरत है
फूलों को अपना दामन बचाना होगा

ऐ लब कभी भूले से नाम ना लेना
उनके होंठो पे रुसवाई का बहाना होगा

धर्मेन्द्र मन्नू

Thursday 11 August 2011

रोना धोना छोडो यारों...

रोना धोना छोडो यारों
बांह की पेंचें मोडो यारों

बातों से ना कोई सुना है
अब ना हथेली जोडो यारों

सूरज निकल चुका है कब का
अपनी आंखे खोलो यारों

बहरी दुनिया को समझाने
अपनी जुबां से बोलो यारों

जो करती है वार तुम्ही पर
उन हाथों को तोड़ो यारों

धर्मेन्द्र मन्नू

कैसा हो रहा है असर आज पहली बार...

कैसा हो रहा है असर आज पहली बार
होश है न अपनी खबर आज पहली बार

उस शोख से निग़ाह जबसे आज मिली है
हर तरफ़ हैं उसके नज़र आज पहली बार

इस गली से उस गली ढुंढा किये उन्हे
ज़िन्दगी बनी है सफ़र आज पहली बार

मंदिर की ख्वाईश है ना मस्ज़िद का ज़िक्र है
कुफ़्र न खुदा की फ़िकर आज पहली बार

सूरज भी चांद जैसा लगे कैसा है भरम
शाम भी लगे है सहर आज पहली बार

धर्मेन्द्र मन्नू