Saturday 26 November 2011

बिन तेरे कुछ भी ना बटा...

बिन तेरे कुछ भी ना बटा
दर्द एक पल को ना घटा

ज़माने के हाथ में खंजर
चुभे जिस दर को मैं सटा

मांगने गया थोड़ी सी सीख
बदले में मेरा अंगूठा कटा

किस गली में ढूंढू तुझे खुदा
तू भी तो है कुनबों में बंटा

धर्मेन्द्र मन्नु

Wednesday 9 November 2011

ज़िन्दगी समन्दर सी रही....

ज़िन्दगी समन्दर सी रही
प्यास फिर भी बाकी रही

कुछ तुमने कहा कुछ हमने
बात मगर फ़िर भी बाकी रही

रात गुजरी उनके ख्यालों में
सुबहा हुई तो नींद जाती रही

लहरों जैसी रही ज़िन्दगी
सांस आती रही जाती रही

सुबह तक सब ठीक ही था
रौशनी बाद में जाती रही

धर्मेन्द्र मन्नू