Thursday 12 December 2013

उठो चलो बढाओ कदम

उठो चलो बढाओ कदम
जब तलक है दम में दम

मंज़िलों के आगे भी हैं
और मंज़िलें कई
खत्म हुई राह एक
दूसरी शुरु हुई
पडाव दर पडाव
नई पर्वतें चढेंगे हम

मोतियों के वास्ते
समन्दरों को छान लें
रौशनी के वास्ते
सूरज को आओ बांध लें
जगत के जर्रे जर्रे में
रौशनी भरेंगे हम

हवा से तेज़ बहते हैं
नदी से तेज़ धार है
सीने में हैं सच्चाईयां
होंठों पे प्रेम राग है…
ठान लेंगे दिल में जो

तो दुनिया को बदलेंगे हम्…

Dharmendra Mannu