उठो चलो बढाओ कदम
जब तलक है दम में दम
मंज़िलों के आगे भी हैं
और मंज़िलें कई
खत्म हुई राह एक
दूसरी शुरु हुई
पडाव दर पडाव
नई पर्वतें चढेंगे हम
मोतियों के वास्ते
समन्दरों को छान लें
रौशनी के वास्ते
सूरज को आओ बांध लें
जगत के जर्रे जर्रे में
रौशनी भरेंगे हम
हवा से तेज़ बहते हैं
नदी से तेज़ धार है
सीने में हैं सच्चाईयां
होंठों पे प्रेम राग है…
ठान लेंगे दिल में जो
तो दुनिया को बदलेंगे हम्…
Dharmendra Mannu