Tuesday, 12 January 2021

मानव

वो मृत नहीं है
वो पत्थर नहीं है 
वो मानव है कर्मशील है
वो चल रहा है गतिशील है
इंसान का कर्म उसे महान बनाता है
न होने पे मूर्तियां बनती है पूजा जाता है।
...
धर्मेन्द्र 'मन्नु'

Thursday, 26 November 2020

उड़ती फ़िल्म इंडस्ट्री

जब वो मुम्बई में उड़ता पंजाब बना रहे थे,
हर ऐक्शन के पहले गांजा, चरस सुलगा रहे थे।
असल में उड़ रही थी मुम्बई फ़िल्म इंडस्ट्री
स्क्रीन पर वो पंजाब को नशे में उड़ा रहे थे।
......
धर्मेन्द्र मन्नु

Friday, 13 November 2020

डर लाजिमी है...

जंगलराज आने की आहट पर नतीजों से पहले....
कैसे मान लूं
जीत और हार
और उसका ज़िंदगी पर असर ....
मेरी हालत वैसी ही रहेगी
जैसी पहले थी! 
वो स्कुल वो अस्पताल 
वो खेत वो सड़क
वो गलियां वो नलियां 
वो बंदूक वो गोलियां
कुछ भी तो वैसा नहीं...
सब एक जैसी होतीं 
तो मैं मान लेता कि 
कोई फर्क नहीं पड़ता
पर फर्क है
और जब ये फर्क है
तो घबराहट लाजिमी है,
डर लाजिमी है...
.....
धर्मेन्द्र 'मन्नु'

Sunday, 13 September 2020

जय महाराष्ट्र

 

आज जबकि
मुम्बई की सडकें
मुम्बईकरों के खून से
भीगी हुई हैं
लोग जय महाराष्ट्र
का नारा भूलकर
वन्देमातरम चिल्ला रहे हैं,,,
राहूलराज का एनकाउन्टर करने वाले
शहीद हो गये हैं
महाराष्ट्र की तरफ़
आंख उठाने पर
आंखें निकलने वाले,
अपने पद से
इस्तिफ़ा दे गांव
लौट चुके हैं....
फिर भी मुझे डर लगता है...
डर लगता है
वन्दे मातरम कहते हुए
क्योंकि चंद दिनों के बाद
जब सडकों पे
बहता खून सूख जायेगा
और लोगों की यादों पे
वक्त की धूल
जम जाएगी
यहीं लोग फिर
निकल पडेंगे सडकों पर
डन्डे लेकर
बट जायेंगे कुनबों में
लगायेंगे नारे- जय महाराष्ट्र
......
धर्मेन्द्र मन्नु

Monday, 24 February 2020

मित्र

उन्हें आप से 
कोई मतलब नहीं 
यदि आप के पास 
उन्हें देने के लिए 
कुछ नही...
आप का दिया हुआ 
वो कभी नहीं लौटाएंगे
आप की सबसे विपरीत
परिस्थितियों में भी...
आप को देखेंगे और
आंखें फेर लेंगे वो
उन्हें आप की कोई 
याद नहीं आएगी...
उसके बाद भी यदि
निभाना चाहेंगे रिश्ते
तो वो खाएंगे आप को
जैसे मरने के बाद 
कीड़े खाते हैं लाश को...
वो ढूंढते फिरते हैं शिकार
दूसरा कोई आप जैसा
एक की कब्र खोद कर
आंखों में आँखे डाल कर
इस तरह मुस्कुराते हैं 
मानो कह रहे हों
ये भी एक तरीका है जीने का...
.....
धर्मेन्द्र मन्नु

Thursday, 20 February 2020

मोदी जी और शाहीनबाग की बिरयानी

बिरयानी के चार चम्मच 
यदि शिकवे दूर कर देते, 
तो हिंदुस्तान पाकिस्तान में 
गाढ़ी मोहब्बत होती। 
दुशाले, आम के टोकरे 
बम नहीं बन गए होते
जन्म दिन का केक 
इतना कड़वा नहीं हुआ होता।

मन के भेद मिट जाते ज़रूर
जब वो CAA का उत्सव मनाते
पाकिस्तानी हिन्दूओं की बस्तियों में जाते
उन्हें गले लगाते 
सबको एक एक चम्मच बिरयानी खिलाते
पर यहां तो बात ही उल्टी है।
दिल तो रो रहा है 
अपने उन भाइयों के लिए...
कहां से मिलेंगी उन्हें
अपहरण, रेप, निक़ाह के लिए 
काफ़िर लड़कियां 
वे यहां आ जाएंगे भाग कर
और उनकी गर्दन पे धीरे धीरे चलती 
छूरी खाली रह जाएंगी...
अधूरी रह जाएगी आस और प्यास 
इनके मजहबी भाइयों की
ये आग मज़हब की है
ये आग हवस की है...
चंद चम्मच बिरयानी से 
नहीं बुझने वाली
.....
धर्मेन्द्र 'मन्नु'

Friday, 22 November 2019

समय

समय
किसके पास है…
सबके पास
बस वही है
दिन के
चौबीस घंटे…
सप्ताह के
सात दिन…
साल के
बारह महीने……
और कुछ
अनिश्चित से साल
ज़िन्दगी के…।

dharmendra mannu...