जब बम के गोले बजते है
तब हम नींदों से जगते है
दो चार गालियां देते है
दो चार सिसकियाँ लेते हैं
दो चार फाइलें इधर ऊधर
दो चार अफसरान इधर उधर
कुछ दिन को आफत आती है
आपा - धापी दे जाती है
कुछ दिन में सब पहले जैसा
फिर वही माजरा होता है
सोने वाले सो जाते हैं
सब अपने कामों में लगते है
धर्मेन्द्र मन्नू
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