Thursday, 15 September 2011

बिन तेरे कहां घर कुछ भी नही....

ज़िन्दगी प्यार वफ़ा कुछ भी नही
मैं तेरे वास्ते अब कुछ भी नही

जब हरा था तो पत्थरें खाया
एक सूखा सा शजर कुछ भी नही

दर्द जो बहता है तो बहने दो
आंसूओं की ये लहर कुछ भी नही

कौन समझेगा इस अफ़साने को
एक बिगड़ी सी बहर कुछ भी नही

चोंच में तिनके लिये उड़ता रहा
बिन तेरे कहां घर कुछ भी नही
धर्मेन्द्र मन्नू

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