फिर उनसे मुलाकात हुई खैर नही है
फिर दर्द की शुरुआत हुई खैर नही है
सुनते थे जो फ़साने कभी दोस्तों से हम
वो घटना मेरे साथ हुई खैर नही है
आसमान को देखने लगा हुं आज कल
फिर पंछिओं से बात हुई खैर नही है
उन्से मिल कर वक्त का पता नही चला
कब दिन हुआ कब रात हुई खैर नही है
सदियों की प्यास है, भला कैसे बुझे पल में
फिर हल्की सी बरसात हुई खैर नही है
धर्मेन्द्र मन्नू
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