दाग दिल के गहरे हैं
हर नज़र पे पहरे हैं।
दर्द बेंचे जा रहे हैं
ज़ख़्म भी सुनहरे हैं
होठों पे मुस्कान ओढे
लोग खुद के कतरे हैं
लब पे कुछ शिकवा नही
लोग गुंगे बहरे हैं
किसको क्या मैं नाम दूं
एक से सब सेहरे हैं
चेहरों पे चेहरे सजे हैं
जाने कितने चेहरे है।
धर्मेन्द्र मन्नू
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