जज्बा-ए-इश्क़ निकल जाएगा रफ़्ता रफ़्ता।
दिल मेरा उनको भूल जाएगा रफ़्ता रफ़्ता।
अभी ये हाल तडपते हैं हम उनके ग़म में
दर्द है जो दवा बन जाएगा रफ़्ता रफ़्ता।
उनसे बिछडे अभी तो कुछ ही साल बीते हैं
वक्त मरहम तो लगाएगा पर रफ़्ता रफ़्ता।
ज़िन्दगी मौत से बदतर अभी तो लगती है
मौत ही ज़िन्दगी बन जाएगी रफ़्ता रफ़्ता।
चरागे इश्क जल रहा है जो मेरे दिल में
जलते जलते वो भी बुझ जाएगा रफ़्ता रफ़्ता।
वक्त से पहले मैं क्यो मौत को लागाऊं गले
ज़िन्दगी खत्म हो ही जाएगी रफ़्ता रफ़्ता।
पहल करुं मैं क्यों,मैं क्यों क़दम बढाऊं आखिर
मौत
जब खुद ही पास आएगी रफ़्ता रफ़्ता।
धर्मेन्द्र मन्नु
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