ग़म में क्यूं आंख भिगोई जाए
ग़म ए ज़िन्दगी रंगीन की जाए
चोट जब भी लगे मुस्काएं हम
दर्द में होंठो पे हंसी आए
जो गया बीत उसको जाने दो
आने वाले वक्त की सोची जाए
तन्हाई से है घबराना क्या
खुद से ही बात कोई की जाए
खोल दो खिडकियां दरवाज़े सब
घरों में कुछ तो रौशनी जाए
दुश्मनी दिल से निकालो जो कभी
प्यार की बात कोई की जाए
Dharmendra mannu
No comments:
Post a Comment