अब किसी का नही एहसान लुंगा।
वक्त का खुद ही इम्तिहान दूंगा।
दर्द को हद से गुज़र जाने दो
अब ना इसकी कोई दवा लूंगा।
कतरा कतरा से प्यास बुझती नही
डूब भी जाऊं तो दरिया लूंगा ।
कोइ अपना नही ज़माने में
किसको क्या दुंगा और क्या लूंगा।
ज़िन्दगी दर्द है रुसवाई है
क्यों भला तुझको मैं सदा दूंगा।
Dharmendra mannu
No comments:
Post a Comment