ज़ुल्मों की दास्तान बाकी है
सब्र के इम्तहान बाकी हैं
अभी तो चंद लम्हे बीते हैं
अभी उम्रे तमाम बाकी हैं
अभी तो पलके थोडी भींगी हैं
आंसूओं के तुफ़ान बाकी हैं
तुमको जो कहना था कह डाला है
अभी मेरी ज़बान बाकी है
अभी तो धुधलका सा छाया है
अभी तो काली रात बाकी है
धर्मेन्द्र मन्नू
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