Tuesday, 21 June 2011

ज़िन्दगी की जेब से खुशियां चुरायें हम...

आओ ग़मों को भूल कर कुछ मुस्करायें हम
ज़िन्दगी की जेब से खुशियां चुरायें हम

है रात तन्हा तन्हा सवेरा है बहुत दूर
रौशनी के वास्ते दीपक जलायें हम

रंगों से खेलने की उमर बीती नही अभी
एक दूसरे को आओ ये यकीन दिलायें हम

अपने तखय्युल को हम परवाज़ क्यों न दें
चांद सितारों को चलो छू के आयें हम

एक दूसरे के ग़म से क्या है अजनबी रहना
एक दूसरे को अपना ग़म-ए-दिल बतायें हम

धर्मेन्द्र मन्नू

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