हैं और भी खुबसूरत फ़सने शहर में
हम भी है आपके दीवाने शहर में ।
हर गली में सैकडो रौशन हैं चराग
रोज़ लाखो जल रहे परवाने शहर में।
एक तरफ़ है लाश तो दूसरी तरफ़ खुशी
एक दूसरे से कितने हैं बेगाने शहर में।
जहां भी बस नज़र गई ऊंचे ऊंचे मकान
ढूंढते हैं फिर भी सब ठिकाने शहर में।
दर्द है तन्हाईयां रुसवाईयां यहां
फिर भी हैं जीने के कुछ बहाने शहर में।
Dharmendra mannu
Sunday, 22 May 2011
इस शहर में मकान दीखते हैं...
इस शहर में मकान दिखते है
दर्दो ग़म के दुकान दिखते हैं
आदमी इंच भर का दिखता है
टुकडो में आसमान दिखते है
हर एक चीज़ अपनी जगह है खडी
सिमटे सिमटे सामान दिखते हैं
टूटी टूटी सी हंसी लगती है
बिखरे बिखरे ज़बान दिखते हैं
......
दर्दो ग़म के दुकान दिखते हैं
आदमी इंच भर का दिखता है
टुकडो में आसमान दिखते है
हर एक चीज़ अपनी जगह है खडी
सिमटे सिमटे सामान दिखते हैं
टूटी टूटी सी हंसी लगती है
बिखरे बिखरे ज़बान दिखते हैं
......
धर्मेन्द्र मन्नु
दाग दिल के गहरे हैं...
दाग दिल के गहरे हैं
हर नज़र पे पहरे हैं।
दर्द बेंचे जा रहे हैं
ज़ख़्म भी सुनहरे हैं
होठों पे मुस्कान ओढे
लोग खुद के कतरे हैं
लब पे कुछ शिकवा नही
लोग गुंगे बहरे हैं
किसको क्या मैं नाम दूं
एक से सब सेहरे हैं
चेहरों पे चेहरे सजे हैं
जाने कितने चेहरे है।
धर्मेन्द्र मन्नू
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