Wednesday, 21 September 2011

फिर हल्की सी बरसात हुई खैर नही है....

फिर उनसे मुलाकात हुई खैर नही है
फिर दर्द की शुरुआत हुई खैर नही है

सुनते थे जो फ़साने कभी दोस्तों से हम
वो घटना मेरे साथ हुई खैर नही है

आसमान को देखने लगा हुं आज कल
फिर पंछिओं से बात हुई खैर नही है

उन्से मिल कर वक्त का पता नही चला
कब दिन हुआ कब रात हुई खैर नही है

सदियों की प्यास है, भला कैसे बुझे पल में
फिर हल्की सी बरसात हुई खैर नही है


धर्मेन्द्र मन्नू

Thursday, 15 September 2011

बिन तेरे कहां घर कुछ भी नही....

ज़िन्दगी प्यार वफ़ा कुछ भी नही
मैं तेरे वास्ते अब कुछ भी नही

जब हरा था तो पत्थरें खाया
एक सूखा सा शजर कुछ भी नही

दर्द जो बहता है तो बहने दो
आंसूओं की ये लहर कुछ भी नही

कौन समझेगा इस अफ़साने को
एक बिगड़ी सी बहर कुछ भी नही

चोंच में तिनके लिये उड़ता रहा
बिन तेरे कहां घर कुछ भी नही
धर्मेन्द्र मन्नू