Friday 21 October 2016

तक्षशीला और नालंदा खंडहरों में ढह गया।

क्या था इक इतिहास और भूगोल, अब क्या रह गया
तक्षशीला और नालंदा खंडहरों में ढह गया।

तुम जहां से आए थे क्या था वहां पहले कभी
मुड़ के देखो पाओगे कि अब वहां क्या रह गया।

कौन कहता है कभी हस्ती कोई मिटती नहीं
देख लो पीछे कभी कि कारवां क्या रह गया।

आए और तोड़ा हमारे देश को और धर्म को
अपने घर में अब तो इक कोना हमारा रह गया।

लहराता था जो पताका विश्व के हर छोर पर
प्यारा वो भगवा हमारा अब कहाँ पे रह गया।

बौद्धिकता की खोल में सच से न अब नज़रें चुरा
घर में आफत आएगी तो पूछोगे क्या रह गया

धर्मेंद्र मन्नु

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