दीपावली में दिल जलता है…
रौशनी की राह को तकती हैं निगाहें
मन का अन्धेरा मगर नही छटता है
दीपावली में दिल जलता है…
निराशा की आंधी आशाओं का दीया
कभी बुझता है कभी जलता है
दीपावली में दिल जलता है…
मन में मिलन की आस लिये
आंखों में इन्तज़ार पलता है
दीपावली में दिल जलता है…
धर्मेन्द्र मन्नु
Friday, 24 June 2011
Tuesday, 21 June 2011
मैं जानता हूँ दर्दे-जिगर ठीक नही है....
मैं जानता हूँ दर्दे-जिगर ठीक नही है।
पर क्या करूँ मैं, मेरी उमर ठीक नही है।
वो कहते हैं, मस्ज़िद में खुदा ही नहीं होता
विश्वास है, झुक जाती कमर ठीक नही है।
जब भी किसी की उँगली उठी, खूँ उबल पडा
मैं मानता हूँ ज़िक्रे-समर ठीक नही है।
जी चाहता है उनको मैं ग़जल में ढाल दूँ
पर क्या कहूँ मैं, मेरी बहर ठीक नही है।
ऐसा है रास्ता, कोई मंज़िल नही जिसकी
सब कहते हैं कि ऐसा सफ़र ठीक नही है।
धर्मेंद्र मन्नू
पर क्या करूँ मैं, मेरी उमर ठीक नही है।
वो कहते हैं, मस्ज़िद में खुदा ही नहीं होता
विश्वास है, झुक जाती कमर ठीक नही है।
जब भी किसी की उँगली उठी, खूँ उबल पडा
मैं मानता हूँ ज़िक्रे-समर ठीक नही है।
जी चाहता है उनको मैं ग़जल में ढाल दूँ
पर क्या कहूँ मैं, मेरी बहर ठीक नही है।
ऐसा है रास्ता, कोई मंज़िल नही जिसकी
सब कहते हैं कि ऐसा सफ़र ठीक नही है।
धर्मेंद्र मन्नू
जाने भी दो दोस्तों अब क्या हुआ...
जाने भी दो दोस्तों अब क्या हुआ
दिल मेरा टूटा अगर तो क्या हुआ
दर्द की चादर लपेटे अश्क में
भीगा है चेहरा मेरा तो क्या हुआ
सर्द आहें बन गई है ज़िन्दगी
ज़ख्म जो गहरा हुआ तो क्या हुआ
कहकशां की भींड़ मे तारे बहुत
कोई ना मेरा हुआ तो क्या हुआ
अब तो अपनी ज़िन्दगी ही रात है
सहर ना मेरा हुआ तो क्या हुआ
Dharmendra mannu
दिल मेरा टूटा अगर तो क्या हुआ
दर्द की चादर लपेटे अश्क में
भीगा है चेहरा मेरा तो क्या हुआ
सर्द आहें बन गई है ज़िन्दगी
ज़ख्म जो गहरा हुआ तो क्या हुआ
कहकशां की भींड़ मे तारे बहुत
कोई ना मेरा हुआ तो क्या हुआ
अब तो अपनी ज़िन्दगी ही रात है
सहर ना मेरा हुआ तो क्या हुआ
Dharmendra mannu
ज़िन्दगी की जेब से खुशियां चुरायें हम...
आओ ग़मों को भूल कर कुछ मुस्करायें हम
ज़िन्दगी की जेब से खुशियां चुरायें हम
है रात तन्हा तन्हा सवेरा है बहुत दूर
रौशनी के वास्ते दीपक जलायें हम
रंगों से खेलने की उमर बीती नही अभी
एक दूसरे को आओ ये यकीन दिलायें हम
अपने तखय्युल को हम परवाज़ क्यों न दें
चांद सितारों को चलो छू के आयें हम
एक दूसरे के ग़म से क्या है अजनबी रहना
एक दूसरे को अपना ग़म-ए-दिल बतायें हम
धर्मेन्द्र मन्नू
ज़िन्दगी की जेब से खुशियां चुरायें हम
है रात तन्हा तन्हा सवेरा है बहुत दूर
रौशनी के वास्ते दीपक जलायें हम
रंगों से खेलने की उमर बीती नही अभी
एक दूसरे को आओ ये यकीन दिलायें हम
अपने तखय्युल को हम परवाज़ क्यों न दें
चांद सितारों को चलो छू के आयें हम
एक दूसरे के ग़म से क्या है अजनबी रहना
एक दूसरे को अपना ग़म-ए-दिल बतायें हम
धर्मेन्द्र मन्नू
ज़ुल्मों की दास्तान बाकी है ....
ज़ुल्मों की दास्तान बाकी है
सब्र के इम्तहान बाकी हैं
अभी तो चंद लम्हे बीते हैं
अभी उम्रे तमाम बाकी हैं
अभी तो पलके थोडी भींगी हैं
आंसूओं के तुफ़ान बाकी हैं
तुमको जो कहना था कह डाला है
अभी मेरी ज़बान बाकी है
अभी तो धुधलका सा छाया है
अभी तो काली रात बाकी है
धर्मेन्द्र मन्नू
सब्र के इम्तहान बाकी हैं
अभी तो चंद लम्हे बीते हैं
अभी उम्रे तमाम बाकी हैं
अभी तो पलके थोडी भींगी हैं
आंसूओं के तुफ़ान बाकी हैं
तुमको जो कहना था कह डाला है
अभी मेरी ज़बान बाकी है
अभी तो धुधलका सा छाया है
अभी तो काली रात बाकी है
धर्मेन्द्र मन्नू
Thursday, 16 June 2011
अब किसी का नही एहसान लुंगा...
अब किसी का नही एहसान लुंगा।
वक्त का खुद ही इम्तिहान दूंगा।
दर्द को हद से गुज़र जाने दो
अब ना इसकी कोई दवा लूंगा।
कतरा कतरा से प्यास बुझती नही
डूब भी जाऊं तो दरिया लूंगा ।
कोइ अपना नही ज़माने में
किसको क्या दुंगा और क्या लूंगा।
ज़िन्दगी दर्द है रुसवाई है
क्यों भला तुझको मैं सदा दूंगा।
Dharmendra mannu
वक्त का खुद ही इम्तिहान दूंगा।
दर्द को हद से गुज़र जाने दो
अब ना इसकी कोई दवा लूंगा।
कतरा कतरा से प्यास बुझती नही
डूब भी जाऊं तो दरिया लूंगा ।
कोइ अपना नही ज़माने में
किसको क्या दुंगा और क्या लूंगा।
ज़िन्दगी दर्द है रुसवाई है
क्यों भला तुझको मैं सदा दूंगा।
Dharmendra mannu
Sunday, 12 June 2011
लहू के रंग ही भर जाए तो अच्छा होगा...
दर्द जो हद से गुज़र जाए तो अच्छा होगा
दर्द ही गर दवा बन जाए तो अच्छा होगा
वक्त है बेवफ़ा न इसपे भरोसा करना
वक्त गर अजनबी बन जाए तो अच्छा होगा
सफ़ेद सफ़हे हैं सारे हमारी ज़िन्दगी के
लहू के रंग ही भर जाए तो अच्छा होगा
हमारी कश्ती तो साहिल पे अक्सर डूबी है
मौजों से दोस्ती हो जाये तो अच्छा होगा
कब तलक बेकरारी कब तलक ये इन्तज़ार
आग ये ठंढी ही हो जाए तो अच्छा होगा
ठहरे पानी सी हो गई है ज़िन्दगी यारों
इससे तो मौत ही आ जाए तो अच्छा होगा
Dharmendra mannu
दर्द ही गर दवा बन जाए तो अच्छा होगा
वक्त है बेवफ़ा न इसपे भरोसा करना
वक्त गर अजनबी बन जाए तो अच्छा होगा
सफ़ेद सफ़हे हैं सारे हमारी ज़िन्दगी के
लहू के रंग ही भर जाए तो अच्छा होगा
हमारी कश्ती तो साहिल पे अक्सर डूबी है
मौजों से दोस्ती हो जाये तो अच्छा होगा
कब तलक बेकरारी कब तलक ये इन्तज़ार
आग ये ठंढी ही हो जाए तो अच्छा होगा
ठहरे पानी सी हो गई है ज़िन्दगी यारों
इससे तो मौत ही आ जाए तो अच्छा होगा
Dharmendra mannu
Wednesday, 8 June 2011
उनकी आदतें हमारी ज़रुरतों पे भारी है…
उनकी आदतें हमारी ज़रुरतों पे भारी है…
उनकी अपनी कैसी यारी है…
होठो पे चिपके हैं मीठे बोल पर
आस्तीन में छीपी एक कटारी है…
उनके घर का कुत्ता होना फ़क्र है
आदमी होना तो एक बिमारी है...
हम तुम वो कौन यहां किसका है
रिश्ते व्यापार हैं दुनिया व्यापारी है
तू खा ले मुझे मैं उसको खाऊंगा
कोई छोटा तो कोई बड़ा शिकारी है
जानता हूं तु मेरी नही हो सकती
पैसा यहां प्रेम पे सदियों से भारी है
धर्मेन्द्र मन्नु
उनकी अपनी कैसी यारी है…
होठो पे चिपके हैं मीठे बोल पर
आस्तीन में छीपी एक कटारी है…
उनके घर का कुत्ता होना फ़क्र है
आदमी होना तो एक बिमारी है...
हम तुम वो कौन यहां किसका है
रिश्ते व्यापार हैं दुनिया व्यापारी है
तू खा ले मुझे मैं उसको खाऊंगा
कोई छोटा तो कोई बड़ा शिकारी है
जानता हूं तु मेरी नही हो सकती
पैसा यहां प्रेम पे सदियों से भारी है
धर्मेन्द्र मन्नु
4. ग़म में क्यूं आंख भिगोई जाए ...
ग़म में क्यूं आंख भिगोई जाए
ग़म ए ज़िन्दगी रंगीन की जाए
चोट जब भी लगे मुस्काएं हम
दर्द में होंठो पे हंसी आए
जो गया बीत उसको जाने दो
आने वाले वक्त की सोची जाए
तन्हाई से है घबराना क्या
खुद से ही बात कोई की जाए
खोल दो खिडकियां दरवाज़े सब
घरों में कुछ तो रौशनी जाए
दुश्मनी दिल से निकालो जो कभी
प्यार की बात कोई की जाए
Dharmendra mannu
ग़म ए ज़िन्दगी रंगीन की जाए
चोट जब भी लगे मुस्काएं हम
दर्द में होंठो पे हंसी आए
जो गया बीत उसको जाने दो
आने वाले वक्त की सोची जाए
तन्हाई से है घबराना क्या
खुद से ही बात कोई की जाए
खोल दो खिडकियां दरवाज़े सब
घरों में कुछ तो रौशनी जाए
दुश्मनी दिल से निकालो जो कभी
प्यार की बात कोई की जाए
Dharmendra mannu
Wednesday, 1 June 2011
3. मुझको रोको न वफ़ा करने दो...
मुझको रोको न वफ़ा करने दो।
अपनी क़दमों के तले मरने दो।
तेरी गली में आज जाना है
आज की रात तो सवरने दो ।
कभी तो लब पे आह आएगी
अपनी नज़रों के आगे जलने दो।
अब तो ये ज़िन्दगी नही भाती
अपने वादे से अब मुकरने दो।
खुली है आंख इन्तज़ार तेरा
ना करो देर अब गुज़रने दो।
DHARMENDRA MANNU
अपनी क़दमों के तले मरने दो।
तेरी गली में आज जाना है
आज की रात तो सवरने दो ।
कभी तो लब पे आह आएगी
अपनी नज़रों के आगे जलने दो।
अब तो ये ज़िन्दगी नही भाती
अपने वादे से अब मुकरने दो।
खुली है आंख इन्तज़ार तेरा
ना करो देर अब गुज़रने दो।
DHARMENDRA MANNU
२. आपकी नज़रों का जादू चल गया
आपकी नज़रों का जादू चल गया
बुझती आंखों में दीया सा जल गया
हम ग़मों की भींड में गुमनाम थे
एक इशारा हमको तन्हा कर गया
देखता हूं आपको देखूं जहां
सारा मंजर आप ही में ढल गया
आपकी परछाईयों के साये में
मौत भी अब ज़िन्दगी में ढल गया
DHARMENDRA MANNU
बुझती आंखों में दीया सा जल गया
हम ग़मों की भींड में गुमनाम थे
एक इशारा हमको तन्हा कर गया
देखता हूं आपको देखूं जहां
सारा मंजर आप ही में ढल गया
आपकी परछाईयों के साये में
मौत भी अब ज़िन्दगी में ढल गया
DHARMENDRA MANNU
१. पत्थरों का शहर है प्यार नही....
पत्थरों का शहर है प्यार नही
दर्द है ठोकरें है यार नही।
जिससे कह दें दिल की बातें अपनी
इस मकान में कोई दीवार नही।
जो भी मिलता है सज़ा देता है
इस क़दर हम भी गुनह्गार नही।
हर सदा मुझको लौट आती है
कोइ सुनता मेरी पुकार नही ।
हम एक पल में छोड दें ये शहर
कह दो मेरी कोई दरकार नही।
दर्द है ठोकरें है यार नही।
जिससे कह दें दिल की बातें अपनी
इस मकान में कोई दीवार नही।
जो भी मिलता है सज़ा देता है
इस क़दर हम भी गुनह्गार नही।
हर सदा मुझको लौट आती है
कोइ सुनता मेरी पुकार नही ।
हम एक पल में छोड दें ये शहर
कह दो मेरी कोई दरकार नही।
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