Wednesday 8 June 2011

उनकी आदतें हमारी ज़रुरतों पे भारी है…

उनकी आदतें हमारी ज़रुरतों पे भारी है…
उनकी अपनी कैसी यारी है…

होठो पे चिपके हैं मीठे बोल पर
आस्तीन में छीपी एक कटारी है…

उनके घर का कुत्ता होना फ़क्र है
आदमी होना तो एक बिमारी है...

हम तुम वो कौन यहां किसका है
रिश्ते व्यापार हैं दुनिया व्यापारी है

तू खा ले मुझे मैं उसको खाऊंगा
कोई छोटा तो कोई बड़ा शिकारी है

जानता हूं तु मेरी नही हो सकती
पैसा यहां प्रेम पे सदियों से भारी है
धर्मेन्द्र मन्नु

1 comment:

  1. badhiya likha hai dharam bhai...

    kabhi mera blog bhi padhein: http://www.premsdhani.blogspot.com

    ReplyDelete