Saturday, 5 October 2019

इश्क के गीत गाने दो...

काले लबादों को
जला दो
सूरजमुखी को सूरज
से मिला दो
कलियों को
खिलखिलाने दो
इश्क के गीत
गाने दो।
घरों में घुटता है
इश्क, ऐसे
रिश्तों के मकड़
जाल में
पिंजरे के पंछी के
पर खोलो परवाज़ दो
गुणसूत्रों के दोष को
मिटाने दो
कलियों को
खिलखिलाने दो
इश्क के
गीत गाने दो...

धर्मेंद्र मन्नु

Saturday, 20 July 2019

तुम तोड़ोगे हम जोड़ेंगे

तुम तोड़ोगे हम जोड़ेंगे
तुम बांटोगे हम साटेंगे
तुम दलित दलित चिल्लाओगे
हम हिन्दू सिंधु गाएंगे
तुम राजनीति चमकाओगे
हम भारत देश बचाएंगे...

धर्मेंद्र मन्नु

Saturday, 12 May 2018

अमीर-गरीब की दोस्ती

 अमीर-गरीब 

की दोस्ती

जैसे घोड़ा 

और घास…

जैसे दोधारी तलवार

जो उपर से भी 

काटती है और

 नीचे से भी…

......

धर्मेन्द्र मन्नु

Tuesday, 8 May 2018

मैं चाहता हूं…

 

मैं चाहता हूं…

विकास के झूठे खोखले 

दावों के बीच

संप्रदायिकता के आरोपों 

प्रत्यारोपों के बीच

मैं चाहता हूं…… 

आज़ादी के बाद जहां सत्ता का 

हस्तांतरण हुआ 

और बदलते समीकरणों में 

व्यवसाय का रुपान्तरण…

कुछ व्यवसायी बने 

कुछ चाटुकार

ठेकेदार और दलाल… 

उस व्यवस्था में जहां 

नेता का बेटा नेता 

अभिनेता का बेटा अभिनेता बनता है

आईएस का बेटा आईएस 

डॉक्टर का बेटा डॉक्टर…

मज़दूर का बेटा मज़दूर… 

और भिखारी का बेटा भिखारी…

जहां शिक्षा पैसे की बांदी हो

और नौकरी एक बिकाऊ माल…

मैं चाहता हूं…

इस लड़ाई को ज़ारी रखने के लिए

इस विश्वास को बनाए रखने के लिए

कि एक पेपर बेचने वाला 

राष्ट्रपति बन सकता है

चाय बेचनेवाला प्रधानमंत्री की 

उस कुर्सी पर बैठ सकता है

मैं चाहता हूं

मोदी प्रधानमंत्री बने…

.......

धर्मेन्द्र मन्नु

Saturday, 4 November 2017

उस की मोहब्बत का तो अंदाज़ जुदा था...

छे बीवियां पहले से थी छे प्यार था पाया।
मुमताज को देखा तो दिल फिर से धड़क आया।।

शौहर को मार कर के उसे बीवी बनाया।
तेईस बरस में चौदह बार प्रेग्नेंट कराया।।

चौदहवां बच्चा पैदा करते मर गई जब वो।
चुटकी में उस की बहन के संग ब्याह रचाया।।

उस की मोहब्बत का तो अंदाज़ जुदा था।
याद में उसकी था महल ताज बनाया।।

-धर्मेंद्र मन्नु

Friday, 21 October 2016

तक्षशीला और नालंदा खंडहरों में ढह गया।

क्या था इक इतिहास और भूगोल, अब क्या रह गया
तक्षशीला और नालंदा खंडहरों में ढह गया।

तुम जहां से आए थे क्या था वहां पहले कभी
मुड़ के देखो पाओगे कि अब वहां क्या रह गया।

कौन कहता है कभी हस्ती कोई मिटती नहीं
देख लो पीछे कभी कि कारवां क्या रह गया।

आए और तोड़ा हमारे देश को और धर्म को
अपने घर में अब तो इक कोना हमारा रह गया।

लहराता था जो पताका विश्व के हर छोर पर
प्यारा वो भगवा हमारा अब कहाँ पे रह गया।

बौद्धिकता की खोल में सच से न अब नज़रें चुरा
घर में आफत आएगी तो पूछोगे क्या रह गया

धर्मेंद्र मन्नु

Tuesday, 21 June 2016

सारी दुनिया एक सुर में कह रही है...

हम लगे हैं बचाने में
पर्यावरण को
आह्वान कर रहे हैं सबको
आगे आने के लिए
लेखक कविताओं कहानियों लेखों से
लोगों को जगा रहे हैं,
शिक्षक स्कूलों कॉलेजों में पेड़ों के काटने से होने वाले नुकसान समझा रहे हैं
बच्चे सडकों पे जुलूस निकाल पर्यावरण संरक्षण के नारे लगा रहे है,
नेता पर्यावरण पे लगातार भाषण दे रहे हैं
वैज्ञानिक सम्मलेन कर रहे हैं
पत्रकार लेख लिख रहे हैं
टीवी दुनिया नष्ट होने तक की बात कह रहे हैं
फिल्मकार फिल्में बना रहे हैं
गीतकार गीत लिख रहे हैं
गायक उत्तरी धुर्व में कंसर्ट कर
पिघलते बर्फ पर अपनी चिंताए जता रहे हैं
दो लोग बैठते हैं तो बात होती है सूखे
और गर्मी बढ़ने के कारणों की
सारी दुनिया एक सुर में कह रही है
धरती बचाने को, आसमान बचाने को,
पेड़ बचाने को, पहाड़ बचाने को
नदी बचाने को....
ना जाने किस से कह रही है...

धर्मेन्द्र मन्नु