Wednesday 19 March 2014

डर लगता था...

डर लगता था
पहले
एकांत निर्जन और सुनसान जगहों से
गुजरते हुए
दिखता जाता था कोई अगर
अचानक
तो मिलता था सुकुन कि
कोई तो मिला
ऐसा था विश्वास इंसान का
इंसान पे

आज
गुजरते हुए सुनसान रास्तों से
अगर कोई मिलता है
तो डर जाता है मन
न जाने कौन है
कैसा है
क्या होगा
ज़माना बहुत बदल गया है
दादा जी कहते हैं

            धर्मेन्द्र मन्नु

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